हम एक असाधारण क्षण में मिल रहे हैं, एक ऐसा क्षण जो वास्तव में, मानव इतिहास में अद्वितीय है, एक ऐसा क्षण जो एक ओर अमंगलसूचक है और वहीं दूसरी ओर बेहतर भविष्य की आशाओं के साथ उज्ज्वल भी है। इस सम्बंध में इतिहास का रुख़ तय करने के लिए प्रोग्रेसिवइंटर्नैशनलको महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी है।
हम एक असाधारण गंभीरता भरे संकट के क्षण में मिल रहे हैं, जब मानव रचना के प्रयोग का अस्तित्व, वस्तुत:, दांव पर है। आधुनिक युग की दो महान साम्राज्यवादी शक्तियों में अगले चंद हफ्तों में कुछ अहम मुद्दों को लेकर आमना-सामना हो सकता है।
मंद होता हुआ ब्रिटेन, जिसने सार्वजनिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय कानून को खारिज किया है , यूरोप से एक स्पष्ट अलगाव की कगार पर है, और जिसके परिणामस्वरूप वह पहले से भी बड़ा अमरीकी उपग्रह बनने जा रहा है। लेकिन निश्चित रूप से, जो भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, वह यही है कि वैश्विक अधिराज्यमें क्या होता है। अमेरिका की स्तिथि ट्रम्प की लापरवाही से सिकुड़ गयी है, परंतु वह अभी भी अतुलनीय फायदों के साथ एक भारी शक्ति है। इसका भाग्य, और इसके साथ दुनिया का भाग्य, शायद नवंबर में ही तय हो जाए।
अगर बाक़ी दुनिया भयभीत नहीं तो चिंतित ज़रूर है। लंदन मेंफाइनेंशियल टाइम्सके मार्टिन वुल्फ़ से ज़्यादा सोबर और सम्मानित टिप्पणीकार मिलना मुश्किल होगा। वह लिखते हैं किवेस्टर्नदुनियाएक गंभीर संकट का सामना कर रही है, और अगर ट्रम्प को फिर से चुना जाता है, तो "यहटर्मिनलहोगा।" ये कठोर शब्द हैं, और वह मानवता के प्रमुख संकटों का तो अभी ज़िक्र भी नहीं कर रहे हैं।
वुल्फ़ग्लोबल ऑर्डरकी बात कर रहे हैं, जो कि एक नाज़ुक मामला है, हालांकि उन संकटों के पैमाने पर नहीं है जो बड़े स्तर पर और ज़्यादा गंभीर परिणामों की चेतावनी दे रहे हैं।यह ऐसे संकट हैं जो कि प्रसिद्धडूम्ज़्डेक्लॉकके काँटों को आधी-रात की तरफ़ भेज रहे हैं—टर्मिनेशनयानी अंत की ओर।
वुल्फ़ की "टर्मिनल" की धारणा सार्वजनिक बातचीत में कोई नया पन्ना नहीं है। हम पिछले75वर्षों से इसकी छाया में जी रहे हैं। जब से उस न भुलाए जाने वाले अगस्त के दिन पर हमने सीखा कि मानव बुद्धि ने उन साधनों को तैयार कर लिया है जो जल्द ही अंतिमविनाश की क्षमता का उत्पादन करेंगे। यह तथ्य तबाह करने वाला था, लेकिन इसमें कुछ और भी था। उस समय यह नहीं समझा गया था कि मानवताएंथ्रोपोसीननामक एक नए भूवैज्ञानिक युग में प्रवेश कर रही है, जिस युग में मानव गतिविधियाँ पर्यावरण को इस तरह से उजाड़ रही हैं कि वह भी अब अंतिमविनाश के करीब पहुंच रहा है।
डूम्ज़्डेक्लॉकके काँटे तब सेट हुए जब परमाणु बमों नेअनावश्यक कत्लेआम कियाथा। जैसे जैसे वैश्विक परिस्थितियां बढ़ीहैं,वह काँटे थरथराए हैं। हर साल, जबसे ट्रम्प कार्यालय में आया है, तबसे काँटे आधी-रात (अंत) के करीब बढ़ रहेहैं। दो साल पहले वे आधी-रात के सबसे करीब पहुंच गए थे। पिछली जनवरी, विश्लेषकों ने मिनट को छोड़ कर सेकंड को पकड़ा: आधी-रात में100सेकंड बचे हैं। उन्होंने पहले की तरह इन्हीं पनपते संकटों का हवाला दिया: परमाणु युद्ध और पर्यावरण की तबाही के बढ़ते खतरे और लोकतंत्र की गिरावट।
अंतिम तर्क (लोकतंत्र की गिरावट) पहली नज़र में शायद अनुचित लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है। "लोकतंत्र की गिरावट" उस गंभीर तिकड़ी का एक उपयुक्त हिस्सा है। हमारे अंत के पहले दो खतरों से बचने की एकमात्र उम्मीद "जीवंत लोकतंत्र" है जहां चिंतित, विचारशील और सूचित नागरिक पूरी तरह से विचार-विमर्श, नीति-निर्माण और प्रत्यक्ष कार्रवाई में लगे हों।
यह स्थिति पिछली जनवरी में थी। तब से राष्ट्रपति ट्रम्प नेतीनों खतरों को बढ़ा दिया है जो कि एक मामूली कार्य नहीं है। एक हाथ पर उन्होंने हथियार नियंत्रण शासन का नाश करने का काम जारी रखा है जो कभी परमाणु युद्ध के खतरे के खिलाफ कुछ सुरक्षा देता था। और वहीं दूसरे हाथ पर, सैन्य उद्योग की बढ़ोतरी के लिए, वह नए और ज़्यादा खतरनाक हथियारों के विकास को बढ़ावा दे रहे हैं। जीवन को सुरक्षित रखने वाले पर्यावरण को नष्ट करने की अपनी समर्पित प्रतिबद्धता में, ट्रम्प ने ड्रिलिंग के लिए विशाल नए क्षेत्रों को खोल दिया है, जिनमे एक आख़री महान प्राकृतिक रिज़र्व भी है। इस बीच उनके चमचे व्यवस्थित रूप से उस देखरेख की प्रणाली को समाप्त कर रहे हैं, जो जीवाश्म ईंधन के उपयोग के विनाशकारी प्रभावों को कुछ हद तक रोकती है, और विषाक्त रसायनों और प्रदूषण से आबादी की रक्षा करती है। यह वह अभिशाप है जो इस गंभीर श्वसन महामारी के दौरान अब दोगुना जानलेवा हो गया है।
ट्रम्प ने लोकतंत्र को कमज़ोर करने के अपने अभियान को और भी आगे बढ़ाया है। कानून के तहत, राष्ट्रपति की नियुक्तियाँ सेनेट की पुष्टि के अधीन हैं। ट्रम्प इस असुविधा से बचने के लिए पदों को खुला रखता है और "अस्थायी नियुक्तियों" के द्वारा कार्यालयों को भर देता है, जिसमें लोग केवल उसके माँ की करते हैं। और यदि वे अपने स्वामि के प्रति पर्याप्त निष्ठा के साथ यह सब नहीं करते, तो उन्हें निकाल दिया जाता है। उसने सरकार की कार्यपालक शाखा से हर स्वतंत्र आवाज़ को मुक्त कर दिया है। अब केवल चापलूस ही बचे हैं। कांग्रेस ने बहुत पहले कार्यकारी शाखा के प्रदर्शन की निगरानी के लिए ‘इन्स्पेक्टर्ज़ जेनरल’ की स्थापना की थी। उन्होंने वाशिंगटन में ट्रम्प की बनाई हुई भ्रष्टाचार की दलदल को जाँचना शुरू ही किया था, जब उसने फ़ौरन उन्हें निकाल कर मामले को रफादफा कर दिया। ‘रिपब्लिकन सेनेट’से इस संबंध में एक भी आवाज़ सुनाई नहीं दी, क्यूंकि वे पूरी तरह से ट्रम्प की जेब मेंहैं। अब उन में शायद ही ईमानदारी
की कोई झलक बची है। वे ट्रम्प की लोकप्रियता से भयभीत हैं।
लोकतंत्र के खिलाफ़ यह हमला मात्र एक शुरुआत है। ट्रम्प ने अपने सबसे ताज़ा कदम में यह चेतावनी दी है कि वह अगर नवंबर चुनाव के परिणाम से संतुष्ट नहीं हुआ तो वह पद नहीं छोड़ेगा। उच्च स्थानों पर यह धमकी बहुत गंभीरता से ली गई है। कुछ और उदाहरणों में , दो बहुत सम्मानित रेटायअर्ड वरिष्ठ सैन्य कमांडरों ने ‘जॉइन्ट चीफ ऑफ स्टाफ़’के अध्यक्ष जनरल मिलीको एक खुला पत्र जारी किया।इस पत्र में उन्होंने मिली को उनकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी याद दिलाई, जिसके चलते उनको एक "गैर-क़ानूनी राष्ट्रपति" को हटाने हेतु सेना को भेजनी पड़ेगी। एक ऐसे राष्ट्रपति को हटाने के लिए जो चुनावी हार के बाद पद छोड़ने से मुकर जाता है और अपने बचाव में ऐसे पैरामिलिटेरी यूनिट बुला सकता है, जैसे उसने पोर्टलैंड, ओरेगन में भेजे थे,—निर्वाचित अधिकारियों के कड़े ऐतराज़ के बावजूद—और जनता को आतंकित किया था।
कई प्रतिष्ठित लोग इस चेतावनी को यथार्थवादी मानते हैं, उनमें से उच्च-स्तरीय ‘ट्रांज़ीशन इंटेगरिटी प्रॉजेक्ट’ है, जिसने नवंबर चुनाव के संभावित नतीजों पर ‘वॉर गेमिंग’के परिणामों की सूचना दी है। परियोजना के सह-निदेशक बताते हैं, "इस परियोजना के सदस्य सबसे संपन्न रिपब्लिकन, डेमोक्रेट, सिविल सर्वेंट, मीडिया विशेषज्ञ, चुनावकर्ता और रणनीतिकार हैं,” और दोनों पार्टियों की बड़ी हस्तियाँ शामिल हैं। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक़ अगर ट्रम्प की सीधी जीत न हुई, तो हर कोईवास्तविक परिस्थिती गृह युद्ध की तरफ़ जाती है जिसमें ट्रम्प "दी अमेरिकन एक्सपेरिमेन्ट" (अमरीकी प्रयोग) को समाप्त करता है।
ये फ़िर से कठोर शब्द हैं, जो पहले कभी भी सोबर मुख्यधारा आवाज़ों से नहीं सुने गए। इस तरह के विचार उत्पन्न होने की बात ही बहुत मनहूस है। ये आवाज़ें अकेली नहीं हैं। और अतुलनीय अमेरिकी शक्ति को देखते हुए, "अमेरिकन एक्सपेरिमेन्ट" से ज़्यादा, और भी बहुत कुछ जोखिम में है।
संसदीय लोकतंत्र के अक्सर कठिन इतिहास में भी ऐसा कभी नहीं हुआ है। हाल ही की स्मृति में, रिचर्ड निक्सन – जो की इतिहास के सबसे सुहावने व्यक्ति नहीं थे – के पास यह सोचने के कई कारण थे कि वे1960के चुनाव डेमोक्रेटिकगुटों की आपराधिक हेराफेरी से ही हारे । लेकिन उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा से आगे बढ़ते हुए देश के कल्याण को सामने रखा, और चुनावी नतीजों पर सवाल नहीं उठाया। अल्बर्ट गोर ने2000में यही किया। आज यह मुमकिन नहीं हैं।
केवल देश की उन्नति की तरफ़ अवमानना करना ही इस अहंकारोन्मादी के लिए काफ़ी नहीं है। ट्रम्प ने एक बार फिर घोषणा की है कि यदि उसका मन कियातो वह संविधान को नकारते हुए तीसरी टर्म की बात छेड़ सकता है।
कुछ लोग इन बातों को एक बेवक़ूफ़ का खेल समझ कर हंसी में उड़ा देते हैं। पर इतिहास दिखाता है, की यह इन्ही लोगोंके लिए ख़तरा है।
जेम्स मैडिसनने चेतावनी दी थी कि "पॉर्च्मेंट बैरीअरस” द्वारा स्वतंत्रता के अस्तित्व की गारंटी नहीं दी जा सकती। केवल कागज़ी शब्द पर्याप्त नहीं हैं क्यूंकि यह सद्भाव और आम शालीनता की उम्मीद पर स्थापित हैं। और ये कागज़ अब ट्रम्प और उनके सह-साजिशकर्ता सेनेट मेजॉरिटीलीडरमिच मैककोनेलने फाड़ दिए हैं। इन दोनों ने "दुनिया की सबसे बड़ी विचारशील संस्था" को एक दयनीय मज़ाक में बदल दिया है। मैककोनेलकी सेनेटने विधायी प्रस्तावों पर विचार करने से भी इनकार कर दिया है। सेनेट को केवल अमीरों के प्रति उदारता और न्यायपालिका को दूर-राइटपंथी युवा वकीलों से ठूस भरने की चिंता है, जिससे वे प्रतिक्रियावादी ट्रम्प-मैककॉनेल एजेंडे को एक पीढ़ी के लिए सुरक्षित कर पाएँ। इन्हे फ़रक नहीं पड़ता की जनता क्या चाहती है और दुनिया को जीने के लिए क्या चाहिए।
ट्रम्प-मैककॉनेल रिपब्लिकन पार्टी की अमीरों के प्रति घृणास्पद सेवा काफी उल्लेखनीय है, नवउदारवादी मानकों द्वारा भी देखा जाए तो । एक उदाहरण नीति के प्रमुखविशेषज्ञों – अर्थशास्त्रि इमैनुअल सैज़और गैब्रियल ज़ुक्मैन – द्वारा प्रदान किया गया है। वे दिखाते हैं कि2018के टैक्स घोटाले के बाद (जो कि ट्रम्प-मैककॉनेलकी इकलौती विधायी सफलता थी) "पिछले सौ वर्षों में पहली बार, अरबपतियों ने इस्पात कर्मियों, स्कूल शिक्षकों और रिटायअर्ड लोगों से कम टैक्स भरा है।" और इसके चलते "वित्तीय इतिहास की एक पूरी सदी" को मिटा दिया गया है। "2018में, संयुक्त राज्य अमेरिका के आधुनिक इतिहास में पहली बार, पूंजी पर श्रम से कम टैक्स लगाया गया है"। यह वर्ग युद्ध की सबसे प्रभावशाली जीतहै, जिसे सत्ता राज के सिद्धांतों में "स्वाधीनता" कहा जाता है।
पिछली जनवरी महामारी के पैमाने को समझने से पहले डूम्ज़्डे क्लॉक सेट किया गया था। देर-सवेर मानवता, भयानक लागत पर, महामारी से उबर जाएगी। यह एक अनावश्यक कीमत है। यह हम उन देशों के अनुभव से साफ़ देख सकते हैं जिन्होंने10जनवरी को चीन से वायरस के बारे में उचित जानकारी लेने के बाद निर्णायक कार्रवाई की थी। उनमें से प्राथमिक थे पूर्व दक्षिण-पूर्व एशिया और ओशिनिया।बाकी देश उनके पीछे थे — विशेष रूप से अमेरिका, उसके बाद बोलसनारो की ब्राजील और मोदी का भारत — जो कि सबसे ज़्यादा तबाह हुए हैं।
कुछ राजनीतिक नेताओं की बेमानी या उदासीनता के बावजूद भी, अंततः विश्व महामारी से कुछ हद तक उभरेगा ही। हालांकि, हम ध्रुवीय बर्फ टोपियों के पिघलने से, या आर्क्टिक में तेज़ी से बढ़ती आग (जो वातावरण में भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें फैला रही है) से , या अपने अन्य तबाही की ओर चलने वाले कदमों से उभर नहीं पाएंगे।
जब प्रमुख जलवायु वैज्ञानिक हमें "गभराएं अभी" कहते हैं, तो वे केवल भय नहीं फैला रहे होते हैं। हमारे पास बर्बाद करने के लिए समय नहीं है। कुछ लोग हीपर्याप्त काम कर रहे हैं, किन्तु इससे काफी बदतर, दुनिया उन नेताओं द्वारा अभिशप्त है जो न केवल पर्याप्त कार्रवाई करने से इनकार कर रहे हैं, बल्कि जानबूझकर आपदा की ओर दौड़ रहे हैं। व्हाइट हाउसकी भूमिका इस राक्षसी आपराधिकता में अग्रणी है।
इसके ज़िम्मेदार केवल सरकारें ही नहीं, बल्कि जीवाश्म ईंधन उद्योग और उन्हें वित्त देने वाले बड़े बैंक, और अन्य उद्योग जो उन कार्यों से लाभ उठाते हैं, वह भी हैं। ये सब गतिविधियां "मानवता के अस्तित्व" को गंभीर जोखिम में डाल रही हैं – जैसा की अमरीका के सबसे बड़े बैंक ने खुद एक आंतरिक ज्ञापन में माना है।
मानवता ज्यादा समय तक इस संस्थागत दृष्टता से नहीं बचेगी। संकट का प्रबंधन करने के साधन उपलब्ध हैं पर वे ज़्यादा समय तक नहीं रहेंगे। प्रोग्रेसिव इंटर्नैशनलका एक प्राथमिक कार्य यह सुनिश्चित करना है कि हम सभी अब घबराएं – और उसके अनुसार कदम उठाऐं।
मानव इतिहास के इस अनूठे क्षण में आज हम जिन संकटों का सामना कर रहे हैं, वे निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय हैं। पर्यावरणीय तबाही, परमाणु युद्ध और महामारी किसी सीमा रेखा से नहीं बँधे हैं। और एक कम पारदर्शी तरीके से, यह उस तीसरे दानव — लोकतंत्र की गिरावट — के लिए भी सच है जो पृथ्वी पर डगमगा रहा है औरडूम्ज़्डेक्लॉकके काँटे को आधी रात की ओर ले जा रहा है। अगर हम इसकी उत्पत्ति की जाँच करें तो इस श्राप का अंतर्राष्ट्रीय चरित्र स्पष्ट हो जाएगा।
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, लेकिन उनकी कुछ समान जड़ें हैं। काफी हद तक यह दुष्टता विश्व की जनता पर40साल पहले शुरू किए गए नियोलिबरल हमले से जुड़ी हुई है।
हमले के मूल चरित्र को इसकी सबसे विशिष्ट हस्तियों की शुरुआती घोषणाओं से ही भांप लिया गया था। पहले रॉनल्ड रेगन ने अपने उद्घाटन संबोधन में घोषणा की कि सरकार समस्या है, समाधान नहीं। इसका अर्थ है कि निर्णय लेने की शक्ति सरकारों से (जो थोड़ी बहुत सार्वजनिक नियंत्रण में होती हैं) हटा करनिजी सत्ता को दी जानी चाहिए। इस निजी सत्ता को जनता से कोई मतलब नहीं है है, और इसका एकमात्र उद्देश्य, जैसा की अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैनकहते हैं, आत्म-संवर्धन है। दूसरी हस्ती मार्गरेट थैचर थी, जिसने हमें निर्देश दिया किसमाज जैसी कोई चीज़ नहीं है, केवल एक बाज़ार है जिसमें लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार बचने के लिए फैंक दिया जाता है।इस बाज़ार में ऐसा कोई संगठन नहीं है जो लोगों को इसके प्रकोपों से बचा सकता है।
बिना किसी संदेह के, थैचर मार्क्स का विवरण कर रही थी। वही मार्क्स जिसने अपने समय के निरंकुश शासकों की निंदा में कहा था की वे जनता को "आलू की बोरी" में बदल रहे हैं—जो कि केंद्रित शक्ति के खिलाफ रक्षाहीन है।
सराहनीय स्थिरता के साथ, रेगनऔर थैचरप्रशासन ने श्रम आंदोलनों को नष्ट करने के लिए कदम उठाए। वह श्रम आंदोलन जो कि अर्थव्यवस्था के स्वामियों के कठोर वर्ग-शासन के लिए प्रमुख रोड़े थे। इसके चलते वे इंटेरवौर वियनाके शुरुआती दिनों के नीयोलिबरल सिद्धांतों को अपना रहे थे। उस समय वहाँ नीयोलिबरल आंदोलन के संस्थापक एवं संत लुडविज वॉन मिज़स मुश्किल से अपनी ख़ुशी रोक पाए जब प्रोटो-फासीवाद सरकार ने ऑस्ट्रिया के खिलखिलाते सामाजिक लोकतंत्र और नीच व्यापारी संघ—जो मेहनतकश लोगों के अधिकारों का बचाव करके ‘उमदा’ अर्थशास्त्र में पड़ाव डाल रहे थे—को नष्ट कर दिया था। वॉनमिज़सने, मुसोलिनी केक्रूर शासन की शुरूआतके पांच साल बाद, अपने1927के नीयोलिबरलक्लासिकलिबरलिस्ममें समझाया था कि, "इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि फासीवाद और वे आंदोलन जिनका उद्देश्य तानाशाही की स्थापना करना हैं, वे अच्छे इरादों से भरे हुए हैं और इनके हस्तक्षेप ने फिलहाल के लिए यूरोपियन सभ्यता को बचा लिया है। फ़ासीवाद ने अपने लिए जो योग्यता हासिल की है, वह इतिहास में अनंत काल तक जीवित रहेगी”- हालाँकि यह केवल कूछ समय के लिए होगी, उसने हमें आश्वासन दिया। और अपना अच्छा काम पूरा करने के बाद ‘ब्लैकशर्ट्स’घर चले जाएंगे।
ऐसे ही सिद्धांतों ने पीनोशेकी भयंकर तानाशाही के लिए नीयोलिबरल समर्थन को प्रेरित किया था। कुछ साल बाद, उन्हें अमरीका और ब्रिटेन के नेतृत्व में, विश्व में एक अलग रूप से काम में लाया गया।
इसके परिणाम उम्मीद के मुताबिक थे। उनमें से एक था, कूछ ही लोगों के हाथ में अधिकतम धन, और बाक़ी अधिकांश लोगों के लिए गतिहीनता, जो राजनीतिक दायरे में लोकतंत्र के गिरावट से स्पष्ट थी। इसका अमरीका में प्रभाव स्पष्ट रूप से सामने लाता है कि हम क्या उम्मीद रख सकते हैं जब व्यापार शासन के रास्ते में कोई नहीं होता।40वर्षों के बाद,0.1% आबादी के पास20% धन है, जो कि रेगनके चुने जाने के समय की तुलना में दोगुना है। सी.ई.ओ.के मुआवजों ने आसमान छू लिया है, जिसके साथ-साथ सामान्य प्रबंधन की पूंजी में भी इज़ाफ़ा हुआ है। गैर-जाँचनेवाले
पुरुष श्रमिकों के वास्तविक वेतन में गिरावट आई है। अधिकांश आबादी वेतन से वेतन तक जीवित रहती है, और उनके पास लगभग कोई बचत नहीं है। ज़्यादातर शिकारी वित्तीय संस्थान बड़े पैमाने पर विकसित हुए हैं। लगातार गंभीर रूप से आर्थिक दुर्घटनाएं हो रही हैं, और अपराधियों को दयालु टैक्स भरने वाले बचाते हैं। हालांकि अपराधियों को राज्य से कई गुना और भी निहित सब्सिडी मिलती है। "खुले बाज़ार" में बलवान ने कमजोर को निगल लिया, जैसे जैसे मनॉपली बढ़ी, और प्रतियोगिता और नवीनता घटी । नियोलिबरल भूमंडलीकरण ने "मुक्त-व्यापार समझौते" रूपी निवेशक अधिकारों के समझौतों के ढांचे का उपयोग करके देश को डी-इंडस्ट्रीयलाईज़ किया है। "टैक्सेशन लूट है”—इस नियोलिबरल सिद्धांत को स्वीकार करते हुए रेगन ने ‘टैक्स हेवन’और ‘शेल’कंपनियों के लिए दरवाज़े खोल दिऐ—जो पहले प्रतिबंध द्वारा वर्जित थे। इसने एक बहुत बड़े कर-चोरी उद्योग को बढ़ावा दिया और बहुत ही अमीर और कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा सामान्य जनता की बड़े पैमाने पर डकैती को तेज़ किया। यह कोई छोटा बदलाव नहीं था। इसके पैमाने का अनुमान दसियों ट्रिलियन डॉलर में है।
और ऐसे यह जारी रहा और नियोलिबरल सिद्धांतों ने गति पकड़ ली।
जैसे ही इस हमले नेरुप लेनाशुरू कर दिया था,1978में, यूनाइटेड ऑटोवर्कर्स के अध्यक्ष, डग फ्रेज़रने कार्टर प्रशासन द्वारा स्थापित श्रम-प्रबंधन समिति से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपनी अत्यधिक निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि “व्यापारिक नेताओं ने इस देश में एक तरफ़ा वर्ग युद्ध छेड़ दिया है—ऐसा युद्ध जो कामकाजी लोगों, बेरोज़गारों, गरीबों, अल्पसंख्यकों, अधिकतम युवाओं, बूढ़े लोगों और यहां तक की मध्यम वर्ग के लोगों के खिलाफ था।” और यह कि, पुनर्जीवित पूंजीवाद के तहत वर्ग सहयोग के समय—“विकास और प्रगति की अवधि के दौरान, जो नाजुक और अलिखित समझौता मौजूद था उसे बाद में तोड़ दिया गया और खारिज कर दिया गया।”
दुनिया कैसे काम करती है यह समझने में उनसे देरी हुई। वास्तव में, व्यापारी नेताओं द्वारा शुरू किए गए कड़वे वर्ग युद्ध को रोकने में बहुत देर हो चुकी थी। इन व्यापारियों को जल्द ही आज्ञाकारी सरकारों ने खुली लगाम दे दी थी। दुनियाभर में बहुत से परिणाम सामने आ रहे हैं जिन्हें देखकर कोई आश्चर्य नहीं होता: व्यापक क्रोध, आक्रोश, राजनीतिक संस्थानों के लिए अवमानना, जबकि प्रभावी प्रचार से प्राथमिक आर्थिक संस्थान छिपे रहते हैं। यह सब नेताओं के लिए उपजाऊ क्षेत्र प्रदान करता है, जो आपकी पीठ में छुरा घोंपते हुए आपके उद्धारकर्ता होने का दिखावा कर सकते हैं। इसी बीच वे आपके हालातों के लिए बलि के बकरों—आप्रवासियों, अश्वेतों, चीन, और जो भी लंबे समय से चलते आ रहे पूर्वाग्रहों में फिट होता हो – को दोषी ठहरा देते हैं।
इस ऐतिहासिक क्षण में हम जिन प्रमुख संकटों का सामना कर रहे हैं, वे सभी अंतर्राष्ट्रीय हैं। और उनका सामना करने के लिए दो अंतरराष्ट्रीय समूहों का गठन किया जा रहा है। आज एक की शुरुआत हो रही है: प्रोग्रेसिवइंटर्नैशनल।दूसरा ट्रम्प के व्हाइट हाउसके नेतृत्व में आकार ले रहा है, एक प्रतिक्रियात्मक इंटरनेशनलजिसमें दुनिया के सबसे प्रतिक्रियावादी राज्य शामिल हैं।
पश्चिमी गोलार्ध में, इस दूसरेइंटर्नैशनलमें बोल्सनारो का ब्राज़ील और कुछ अन्य शामिल हैं। मिडल ईस्ट में, प्रधान सदस्य गल्फ़ की पारिवारिक तानाशाहीयां हैं; अल-सिसी की मिस्र की तानाशाही, जो शायद मिस्र के कड़वे इतिहास में सबसे कठोर है; और इज़राइल, जिसने बहुत पहले अपने सामाजिक लोकतांत्रिक मूल्यों को त्याग दिया था और दूर-राइट की राजनीति की तरफ मुड़ गया था, जो की लंबे समय के क्रूर कब्जे का प्रभाव था। इज़रायल और अरब तानाशाहों के बीच का समझौते ने पुराने संबंधों को औपचारिक रूप दिया है। यह प्रतिक्रियावादी इंटर्नैशनल केके मिडल ईस्ट आधार को ज़माने का एक महत्वपूर्ण कदम है। फिलिस्तीनियों को लात मारी जाती है, जो की उन लोगों का‘वास्तविक’ भाग्य है जिनके पास शक्ति नहीं होती और जो ज़ाहिरी स्वामियों के चरणों में ठीक से नहीं झुकते हैं।
पूर्व की ओर, एक ज़ाहिरी उम्मीदवार भारत है, जहां प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर को कुचलते हुए भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को नष्ट कर रहा है और देश को जातिवादी, हिंदू राष्ट्रवादी राज्य में बदल रहा है। यूरोपीय पक्ष में हंगरी में ओर्बनका "अनुदार लोकतंत्र" और इसी तरह के अन्य तत्व शामिल हैं। इस ‘इंटर्नैशनल’के पास प्रमुख वैश्विक आर्थिक संस्थानों का शक्तिशाली समर्थन भी है।
इन दोनो इंटर्नैशनलोमें दुनिया का एक बड़ा हिस्सा शामिल है—एक राज्यों के स्तर पर और दूसरा लोकप्रिय आंदोलनों के रूप में। प्रत्येक ही व्यापक सामाजिक ताकतों का एक प्रमुख प्रतिनिधि है, और दोनों के पास महामारी से उभरने वाली दुनिया की दो अलग छविया हैं। एक बल नियोलिबरलवैश्विक प्रणाली के एक कठोर संस्करण का निर्माण करने के लिए काम कर रहा है जिससे उन्हें गहन निगरानी और नियंत्रण के तहत काफी फायदा हुआ है। दूसरा न्याय और शांति की दुनिया के लिए तत्पर है, जहां ऊर्जा और संसाधनों को कुछ लोगों की मांगों के बजाय मानव आवश्यकताओं की सेवा करने के लिए निर्देशित किया जाता हैं। यह एक तरह का वर्ग संघर्ष है, लेकिन वैश्विक स्तर पर, कई जटिल पहलुओं और परस्पर क्रियाओं के साथ।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि रचना के प्रयोग का अस्तित्व इस संघर्ष के परिणाम पर निर्भर करता है।